रमज़ान में सबसे ज़्यादा फ़ज़ीलत आख़िरी अशरे की है : चौधरी सलमान नदवी
अल्लाह तबारक व तआला ने दिन और रात को 12 महीनों में तक़सीम किया है, इनमें सबसे ज़्यादा बरकत वाला महीना रमज़ान है, इस महीने में अल्लाह ने अपने बन्दों को रोज़ा रखने और ज़्यादा से ज़्यादा इबादत करने का हुक्म दिया है।
इस महीने की फ़ज़ीलत इस हदीस से साबित होती है कि एक मर्तबा रसूल-ए-अकरम ﷺ मस्जिद-ए-नबवी के मिम्बर पर चढ़ रहे थे और हज़रत जिब्राईल (अलै०) ने उस शख़्स पर लअनत की जो रमज़ान को पाए और अपनी मग़फ़िरत न करवा सके, इस बद्दुआ पर रसूल-ए-अकरम ﷺ ने 'आमीन' कहा।
रामज़ानुल मुबारक रहमत, बरकत और जहन्नम से आज़ादी पाने का महीना है,
अल्लाह इस महीने में बन्दों के गुनाह बख्शता है।
यूं तो पूरा रमज़ान बरकतों का महीना है लेकिन रमज़ान में सबसे ज़्यादा अहमियत आख़िरी अशरे की है,
रसूल-ए-अकरम ﷺ ने इन 10 दिनों में सबसे ज़्यादा इबादत की है और अपने घर वालों को भी करने का हुक्म दिया है, हदीस में आता है कि रसूल-ए-अकरम ﷺ हज़रत अली और हज़रत फ़ातिमा (रज़ि०) का दरवाज़ा खटखटा कर रात में इबादत के लिए जगाया करते थे,
हज़रत आइशा (रज़ि०) फरमाती हैं कि रसूल-ए-अकरम ﷺ रमज़ान के आख़िरी अशरे में बाक़ी 20 दिनों से ज़्यादा इबादत करते थे,
और इबादत के लिए कमर कस लिया करते थे।
इस अशरे की मक़बूलियत इसलिए और भी बढ़ जाती है क्योंकि इसी अशरे की ताक़ रातों में अल्लाह ने क़ुरआन नाज़िल करने की शुरुआत की, अल्लाह के नज़दीक ये रात इतनी महबूब है कि इसकी अहमियत बताने के लिए क़ुरआन ने पूरी सूरह उतार दी,
अल्लाह तबारक व तआला का फ़रमान है कि 'हमने इस किताब को शब-ए-क़द्र में उतारा है,ये रात हज़ार महीनों से बेहतर है, इसमें फ़रिश्ते ख़ैर, बरकत और सलामती ले कर बन्दों के पास आते हैं।
अल्लाह ने इस रात को रमज़ान के आख़िरी अशरे की ताक़ रातों में तलाश करने का हुक्म दिया है,
यानि आख़िरी अशरे की कोई एक रात शब-ए-क़द्र है।
यही वजह है कि रसूल-ए-अकरम ﷺ आख़िरी अशरे में मस्जिद में ऐतकाफ किया करते थे और इबादतों में मशग़ूल रहते थे।
इसलिए हम सबको आख़िरी अशरे में और ज़्यादा इबादतों का एहतिमाम करना चाहिए और सदक़ा-ए-फ़ित्र भी अदा करना चाहिए, ध्यान रहे कि सदक़ा-ए-फ़ित्र में पौने तीन किलो अनाज देना होगा, जैसा कि रसूल-ए-अकरम ﷺ और सहाबा इकराम से साबित है।
इस महीने की फ़ज़ीलत इस हदीस से साबित होती है कि एक मर्तबा रसूल-ए-अकरम ﷺ मस्जिद-ए-नबवी के मिम्बर पर चढ़ रहे थे और हज़रत जिब्राईल (अलै०) ने उस शख़्स पर लअनत की जो रमज़ान को पाए और अपनी मग़फ़िरत न करवा सके, इस बद्दुआ पर रसूल-ए-अकरम ﷺ ने 'आमीन' कहा।
रामज़ानुल मुबारक रहमत, बरकत और जहन्नम से आज़ादी पाने का महीना है,
अल्लाह इस महीने में बन्दों के गुनाह बख्शता है।
यूं तो पूरा रमज़ान बरकतों का महीना है लेकिन रमज़ान में सबसे ज़्यादा अहमियत आख़िरी अशरे की है,
रसूल-ए-अकरम ﷺ ने इन 10 दिनों में सबसे ज़्यादा इबादत की है और अपने घर वालों को भी करने का हुक्म दिया है, हदीस में आता है कि रसूल-ए-अकरम ﷺ हज़रत अली और हज़रत फ़ातिमा (रज़ि०) का दरवाज़ा खटखटा कर रात में इबादत के लिए जगाया करते थे,
हज़रत आइशा (रज़ि०) फरमाती हैं कि रसूल-ए-अकरम ﷺ रमज़ान के आख़िरी अशरे में बाक़ी 20 दिनों से ज़्यादा इबादत करते थे,
और इबादत के लिए कमर कस लिया करते थे।
इस अशरे की मक़बूलियत इसलिए और भी बढ़ जाती है क्योंकि इसी अशरे की ताक़ रातों में अल्लाह ने क़ुरआन नाज़िल करने की शुरुआत की, अल्लाह के नज़दीक ये रात इतनी महबूब है कि इसकी अहमियत बताने के लिए क़ुरआन ने पूरी सूरह उतार दी,
अल्लाह तबारक व तआला का फ़रमान है कि 'हमने इस किताब को शब-ए-क़द्र में उतारा है,ये रात हज़ार महीनों से बेहतर है, इसमें फ़रिश्ते ख़ैर, बरकत और सलामती ले कर बन्दों के पास आते हैं।
अल्लाह ने इस रात को रमज़ान के आख़िरी अशरे की ताक़ रातों में तलाश करने का हुक्म दिया है,
यानि आख़िरी अशरे की कोई एक रात शब-ए-क़द्र है।
यही वजह है कि रसूल-ए-अकरम ﷺ आख़िरी अशरे में मस्जिद में ऐतकाफ किया करते थे और इबादतों में मशग़ूल रहते थे।
इसलिए हम सबको आख़िरी अशरे में और ज़्यादा इबादतों का एहतिमाम करना चाहिए और सदक़ा-ए-फ़ित्र भी अदा करना चाहिए, ध्यान रहे कि सदक़ा-ए-फ़ित्र में पौने तीन किलो अनाज देना होगा, जैसा कि रसूल-ए-अकरम ﷺ और सहाबा इकराम से साबित है।